Sunday 12 May 2019

भारतीय इतिहास

१: सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी जिसमें नगरों के निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया था
२: सिंधु सभ्यता के लोग घोड़े से अपरिचित थे ।
३:  हड़प्पा का पुरास्थल पाकिस्तान के शाही वाल जिले में रावी नदी के तट पर नदी से लगभग 3:30 किलोमीटर हटकर स्थित है ।
४: हड़प्पा नगर 5 किलोमीटर के घेरे में बसा हुआ था हड़प्पा का दुर्ग क्षेत्र सुरक्षा प्राचीर से घिरा था।
५: हड़प्पा के अन्ना गार में 12 कक्ष जो 6 ,6 की 2 पंक्तियों में बने थे।
६: यहां मजदूरों की छोटे छोटे मकानों वाली बस्ती भी है मजदूरों की आवास में 15 मकान दो लाइनों में बनाए गए थे । 7 मकान उत्तर दिशा में और 8 मकान दक्षिण दिशा में थे।
७:  शव  प्राय उत्तर दक्षिण दिशा में दफनाए जाते थे जिनमें से उत्तर की ओर होता था।
८: हड़प्पा के प्रत्येक घर में कमरे और आंगन होते थे ,कुएं प्राप्त नहीं  हुए हैं।
९: नगर योजना में सड़कों को महत्वपूर्ण स्थान मिला था जिनका निर्माण उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम दिशा में किया गया था एक दूसरे को समकोण पर काटती चौड़ी सड़कों द्वारा मोहनजोदड़ो नगर 12 विशाल आयताकार खंडों में बांटा था मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर और सहायक सड़कें के 3 मीटर चौड़ी थी।
१०: मोहनजोदड़ो में मकानों के दरवाजे और खिड़कियां प्राय सड़को की और न होकर होकर गलियों की ओर होती थी निवास कक्ष का निर्माण पक्की ईंटों से किया गया था।
११: मोहनजोदड़ो के अवशेष पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाहिनी किनारे पर स्थित है।
१२: काली बंगा की खुदाई बीबी लाल और बीके थापर ने घग्गर नदी पर राजस्थान में की थी हल से जूते खेत के साक्ष्य भी यहीं से मिले हैं यहां से घर कच्ची ईंटों के बने मिले हैं।
१३: मेसोपोटामिया की बेलनाकार मुहर
भी यहीं से मिली है यह वहां की स्थानीय विशेषता थी काले रंग की मिट्टी की चूड़ियां भी यहीं से प्राप्त हुई है शायद इसीलिए इसका नाम कालीबंगा रखा गया है यहां से अग्नि कुंड और हवन कुंड के साक्ष्य मिले हैं यहां से लकड़ी की नाली भी मिली है।
१४:  काली  बंगा के  लोगों के बर्तन लाल और गुलाबी रंग के होते थे यह लोग छह प्रकार के बर्तन बनाते थे इनमें पेदीदार और संकरे मुंह के कलश, वर्तुल आकार और चिपटी पेंदे के घड़े मटके कटोरे साधारण तश्तरीया तसले और ढक्कन आदि होते थे।
१५:  राजस्थान के गंगानगर जिले में कालीबंगा नामक महत्वपूर्ण पुरास्थल है इसकी खोज सन 1951 में अमला नंद घोष ने की थी।

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